शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

chintan and chinta

अपने देश के राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था
क्रिया को छोड़ चिंतन में फंसेगा, उलट कर काल तुझको ही ग्रसेगा
आप कह सकते हे की जीवन को आगे बढ़ने देने के लिए चिंता का त्याग करना होगा। यह एक सच्चाई हे। वावजूद इसके हम और आप चिंता करते हे चाहे वह पारिवारिक हो,सामाजिक हो या आर्थिक.सच कहिये तो आज पुरा चिंतन अर्थ को लेकर ही चल रहा हे। इन चिंतावो से मुक्ति आजीवन मिलने वाली नही हे पर यही जीवन का आनंद हे और आदमी पुरी जिंदगी हँसी-खुशी गुजर देता है।chinta
आदमी को शारीरिक एवं मानसिक रूप से परेशां करती है जबकि चिंतन uske मानसिक और सामाजिक सोच का दायरा बढाती है यह चिंतन किसी ग्रन्थ का हो या अपने आराध्य का कुछ भी हो सकता है। वैज्ञानिक चिंतन कर अविष्कार करते है जिसका फायदा समाज को मिलता है यह छिपी बात नही है। आपके भीतर जो एक छिपी हुई शक्ति है उसे जगाये और सतत सावधान रहे की वह हमेशा जाग्रत रहे.