बुधवार, 27 जनवरी 2010

संकल्प बल

आपने धार्मिक ग्रंथों में शाप और वरदान के वृतांत पढ़े होंगे। आपने लक्षित किया होगा की शाप या वरदान देने वाले सभी तेजस्वी योगी पुरुष ही नहीं रहे हैं। इनमे राजा ,स्त्रिया और कहीं कहीं तो बालक भी हैं। उनके शाप या वरदान प्रभावशाली क्यों हो गए! और आज के युग में ये प्रभावशाली नहीं होते-क्यों!
शाप और वरदान के सफल होने के मूल में एक निश्चित सत्य है की आपके संकल्प में बल होना चाहिए। आपको अपने निश्च्य्य में,अपनी बात में विश्वास होना चाहिए की वह असफल नहीं होगी.आपने पढ़ा होगा की अनेक बार शाप देने वाले ने अनजान में किसी भूल से शाप दे दिया जो देना नहीं चाहता था-अतः वह कह देता है--अब तो बात कही जा चुकी--इस वाक्य का अर्थ है की उसे अपनी बात के सत्य होने में तनिक भी संदेह नहीं है - यह जो विश्वास है यही संकल्प को बलवान बनाता है। इसलिए आपका संकल्प सुनिश्चित होना चाहिए जबकि स्थिति यह है की व्यक्ति स्वयं अपने संकल्प पर स्थिर ही नहीं रहता--यह काम हम इस दिन इतने बजे करेंगे तब किसी बड़े कारण के हुए बिना कुछ बिलम्ब हो गया हो- यह उसके संकल्प को बलहीन बनाता है और जब व्यक्ति बराबर ऐसा करता है तब संकल्प बिज हिन् हो जाता है।
संकल्प बल कैसे प्राप्त किया जाये-आप बहुत छोटे स्तेर से इसका प्रयोग कर सकते है। कुछ महीने तक निश्चय कर लीजिये -मेरी दिनचर्या ऐसी रहेगी और बिना असाधारण कारन के परिचितों के लिए,परिवार के लिए,मित्रों के लिए इसे बदलिए मत। हालां की ऐसा करने में बहुत कठिनाई होगी ,बहुत लोग अप्रशन्न होंगे,बहुतों की उपेछा करनी होगी परन्तु इससे आपके संकल्प को बल मिलेगा। व्यक्ति किसी की बिना अपेछा किये कैसे अपने निश्चय पर अटल रहता है-यह आप समझ जायेगे और यदि इस निश्चय पर कुछ अधिक दिन आप जमे रहे तब आपकी प्रज्ञा स्थित होने लगेगी। यही प्रक्रिया है जिसके द्वारा संकल्प बलवान होता है और बलवान संकल्पशक्ति का शाप या वरदान व्यर्थ नहीं होता.

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

सुगंधी दीजिये

आप यदि विवेकशील,स्वच्छ आचरण तथा परोपकारी व्यक्तित्व के धनि है तो मै आशा कर सकता हूँ की आप जिनसे मिलेगे,जिनके संपर्क में आयेगे उनको दुर्गंधी नहीं देगे। आप के जीवन में सुगंध होना चाहिए। आप जहाँ बैठे,जहाँ रहें,जिनसे मिलें उनको सुगंधी दीजिये।
इस सुगंध का मतलब इत्र या स्सेंट नहीं है-इसका अर्थ है सद्गुणों की सुगंध.आप किसी को जीवन में संयम की बात कहते है, कुछ सार्थक बातें बतलातें है तो उसे जीवन के लिए सुगंध प्राप्त होगी। यह सुगंध आप बिना अतिरिक्त श्रम किये,बिना अतिरिक्त व्यय किये सबको देते रह सकते है।
मनुष्य का जीवन इस युग में बहुत व्यस्त है.अपनी परिस्थिति से वह क्लांत,छुब्ध रहता है उसे जो मिलता है एसा ही व्यव्हार करता है जिससे उसकी खीझ बढे। आप का कोई काम हो जाये और करने वाले को यदि धन्यवाद कह देते है तो आपका कुछ बिगरतानहीं किन्तु उसे एक प्रशन्नता होती है। आपने कभी स्टेशन पर कुली को सामान ठीक जगह पर रखने के पश्चात ठीक पैसा देकर धन्यवाद कहा है? कहकर देखिये। यह संसार को सुगंधी देना है। दूसरों को सुख-सुविधा और सात्विकता आदि देने का प्रयत्न आपमें है तो आप सर्व भुत हिते रताः सिधांत की और आगे बढ़ेगे।
हमारे जीवन में बहुत सी बातें प्रमाद के कारन उत्पन्न होती है। आप सावधान रहे तो दूसरों को शारीरिक,मानसिक किसी प्रकार की असावधानी ,दुर्गन्ध देने से सरलतापूर्वक बच सकते है, आपका जीवन सद्गुणों से भरा होना चाहिए। इस प्रकार आपके पास सद्गुणों की सुगंधी हो तब आप विश्व को देते रह सकते हैं.

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

जीवन-निर्माण

आप कैसा जीवन चाहते है जब तक आप निश्चय न कर लें आप जो भी प्रयत्न करेंगे वह शायद ही सफल होगा। लोग अन्धानुकरण करते है दूसरों को देखकर अपने बारे में वैसा ही चाहते है। क्या आपने कभी चिन्तन किया है की आप अपना जीवन कैसा चाहते है। जीवन में आपको क्या-क्या उपलब्धियां चाहिए-आपको खुद सोचना होगा।
जीवन का निर्माण योजनापूर्वक होता है। आप एक मकान बनाते है.कोई कारखाना खोलते है तो आप योजना बनाते है पश्चात उस विषय के विशेषज्ञ को फ़ीस देकर उसकी सेवाएं लेते है। यह मकान या कारखाना तो आपका जीवन नहीं है बल्कि जीवन का एक अंग है। तो क्या इस प्रकार आपने अपने जीवन निर्माण की कोई योजना बनाई है? यदि बनाना है तो जीवन निर्माण के विशेषज्ञों की सेवाएं लेने की जरुरत होगी की नहीं? जीवन में आप क्या प्राप्त करना चाहते है आप अपने आप से इमानदारी से पूछिए। मकान ,कार ,पद,प्रतिष्ठा,संपत्ति-ये सब लक्ष्य नहीं होते बल्कि ये किसी दूसरी वस्तु को पाने का साधन होते है-इन सबको प्राप्त कर के भी आप अपना जीवन निर्माण नहीं कर सकते।
जीवन का निर्माण आपको अपने लिए ही नहीं चाहिए। आपको अपने सुह्रिद्यो के लिए,अपने बच्चों के लिए,अपने सम्बन्धियों के लिए भी चाहिए। अतः आप अपना जीवन निर्माण अच्छी तरह करके अपने आचरण में लायें-अपने जीवन में उतारें इससे यह होगा की जो आप के समीप है उनपर आपके आचरण का प्रभाव इतना पड़ेगा जितना आपके उपदेश और आपके दबाव का नहीं पड़ेगा.