मंगलवार, 4 जून 2013

कहते है इन्सान भी पत्थर हो जाता है बिलकुल संवेदनहीन -पर क्या इन पत्थरों में कोई संवेदन नहीं होता- क्या हृदयहीन है ये पत्थर जो सदियों से धरती पर पड़े है. ----

नहीं समझाते है लोग / कभी भी भ्रमवश / कि  /
ह्रदय भी होता है इन पत्थरों का /
समझते  है- तम का कोष ,तिमिर का सहचर /
नहीं-नहीं जानते / नहीं समझते  है लोग /
ऐसा भी होता है / ऐसा भी है /
कई कई पत्थरों के अंतस में / आलोकित होती रहती है /
कनी  हीरे की /  हीरा  या हीरे का शुद्ध  रूप / कुछ भी / या दोनों /
किन्तु नियति की विडंबना / इन पत्थरों का भाग्य /
पारखी  दृष्टि की छुवन -स्पर्श /
पहचानती है आलोक / ऊर्जा / और 
इन पत्थरों की पीड़ा .

पत्थरों की पीड़ा