सोमवार, 16 अगस्त 2010
chintan
१६ जुलाई के बाद जिदगी के अनछुए पहलुओं से रूबरू होना पड़ा. इस बीच परिस्थितिओं में काफी बदलाव हुआ. चिंतन को एक नयी दिशा प्राप्त हुई. यह जो विज्ञानं के द्वारा अनेक सुविधाएँ हमें मिली हैं उसके उपयोग और दुरुपयोग पर सोचता रहा. आज के युग में आदमी इतना विवेकहीन हो सकता है , नैतिक रूप से इतना नीचे जा सकता है , हमने-आपने कभी सोचा न होगा. आज बाजार में सब कुछ बिकता है और इस खरीद -फ़रोख्त में विचार भी शामिल हो गया है. किस बात को लेकर आज आदमी अपने पर गर्व करता है? धन संचय की यह जो जिजीविषा जन्म ले रही है वह आदमी को पतन की किस सीमा तक ले जाएगी सोचा नहीं जा सकता. पतनशील मार्ग को आदमी प्रगतिशील मार्ग मान रहा है आज. धरती का मानव इस जगह पहुँच जायेगा यह भगवान ने भी नहीं सोचा होगा. आप भी इस पर विचार कीजिये.
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