मित्रों, लगभग ग्यारह महीनों बाद मैं आपके सामने फिर से आया हूँ इस बीच अनेक थपेड़े सहे फिर भी जीवन पथ से डिगा नहीं. सच तो यह है कि जीवन जीने के लिए है अपने लिए नहीं दूसरों के लिए. अपने लिए तो पशु ही जीते है.
आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका ह्रदय और मन शांत रहे परन्तु स्वभावतः ऐसा हो नहीं पाता. वस्तुतः यह अहंकार के कारण ही होता है . कोई व्यक्ति छोटा है उससे अलगाव रहे तथा कोई काम छोटा है-हमारे करने लायक नहीं है-यह सब मन के भीतर उपस्थित अहंकार के फलस्वरूप है जिसके कारण मानसिक तनाव उत्पन्न होता है. पाश्चात्य शिक्षा पद्धति ने भारतीय समाज में अनेक तरह का भेद पैदा कर दिया है-अधिकारी, क्लर्क,चपरासी ,उच्च ,निम्न ,अमीर, गरीब जैसी संज्ञाओं को अपने मन में रखे लोग निरंतर अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहतें हैं. हमारे समाज में पहले से ही धार्मिक एवं वैचारिक रूप से अनेक भेद विद्यमान है. यही कारण है कि लोगों में तनाव बढ रहा है.
इस संसार में दुःख अधिक है जबकि सुख कम. अच्छे और भले लोग कम है जबकि स्वार्थी लोग ज्यादा-इसलिए अपनी कामनाओं कि सीमाएं समझने कि आवश्यकता है.भारतीय दर्शन कि विशेषता है कि वह सांसारिक पदार्थों में अधिक मोह न पालने की बात कहता है. अधिक संपर्क बनाने या सम्पति का सृजन करने से अपने मन में मोह तथा अहंकार का भाव पैदा होता है जिससे कालांतर में बुरे pariraam स्वयं को भोगने पडतें है.
यह सच्चाई है कि आदमी कितना भी धन प्राप्त कर ले फिर भी उसमें यह भय बना रहता है कि वह कभी नष्ट न हो-चोरी न हो-वह चिंतित रहता है-निद्रा उसके लिए दुर्लभ हो जाती है-वह और संग्रह में लग जाता है फलतः उसका जीवन और कठिन हो जाता है. कहने का तात्पर्य यही है कि सब कुछ व्यक्ति को कभी प्राप्त नहीं हो सकता-यह प्राकृतिक नियम है. अतः जो कुछ भी प्राप्त हुआ है उसे लेकर मन में अहंकार नहीं होना चाहिए क्योंकि भौतिक उपलब्धियां दैहिक होतीं है और देह के साथ ही समाप्त हो जातीं है.