गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

व्यसन का त्याग

व्यसन का अर्थ है ऐसी वस्तु या क्रिया जो आपको अपने वश में कर ले जिसे सेवन करने के लिए आप विवश हों । व्यसन का अर्थ क्रिया भी है जैसे जुआ खेलना व्यसन है-जुआरी जुए के बिना नहीं रह सकता। सब व्यसन बुरे नहीं होते- जो बुरे नहीं हैं उसे व्यसन नहीं अपितु अभ्यास कहा जाता है। इस अभ्यास और व्यसन में एक अंतर है। व्यसन आपकी चेतना को समाप्त कर देता है जबकि अभ्यास आपकी चेतना को परिष्कृत करता है आपकी मनुष्यता को निखारता है।
बहुत से लोगों को भ्रम होता है की किसी नशा विशेष के सेवन से हानि नहीं है बल्कि उससे शांति मिलती है, एकाग्रता आती है। यह भ्रम आज का नहीं है अपितु प्राचीन कल से ही चला आ रहा है। बात यह है की नशे के सेवन से जो ध्यान या एकाग्रता मिलती है-वह आपके स्वतंत्र प्रयास से नहीं मिलती अतः उसका अच्छा परिणाम आपको नहीं मिलता। जैसे निद्रा और समाधी में कोई अंतर नहीं है परन्तु खूब गंभीर निद्रा लेने पर भी आपको कोई मनोजय प्राप्त नहीं होता- अधिक से अधिक यही होगा की शारीरिक रूप से आप प्रफुल्ल नजर आयेगें- यह इसलिए की निद्रा व्यक्ति को विवशतः आती है और समाधी स्वतंत्रतापूर्वक आपके प्रयत्न से प्राप्त होती है। इसी प्रकार किसी भी नशे के सेवन से जो मानसिक स्थिति आपको प्राप्त होती है वह आपका प्रयत्न नहीं है , नशा का प्रभाव है। नशा का प्रभाव दूर होने पर आप एक अवसाद का अनुभव करते है। ऐसा न होता तो क्लोरोफोर्म से प्राप्त बेहोशी समाधी कही जाती। मादक पदार्थों का जो लोग सेवन करते है उनमें ये सब लक्षण आपको मिलेगें।
आज चाय, तम्बाकू, गुटका, पान -मसाला बहुत व्यापक व्यसन हो गएँ हैं क्योंकि ये आपको विवश करतें हैं। जैसे भूख लगने पर आप भोजन कर लेते हैं पर कोई विशेष व्यंजन ही खाई जाये इसके लिए विवश नहीं है-रोटी की जगह चावल खा लेने से भी भूख मिट जाएगी-पर चाय के स्थान पर कोई शरबत पीकर या गुटका की जगह इलाइची खा कर आप काम नहीं चला सकते। आज जो सामाजिक स्थिति है उसमें हम आप अनेक बातों के लिए विवश हैं फिर भी हमें व्यसन का त्याग करना ही चाहिए-हालाँकि इस त्याग के लिए आपको मानसिक और शारीरिक संघर्ष करना होगा। व्यसन त्याग आप आवश्यक मान ले तब आपकी मानसिक स्थिति ऐसी हो जाएगी की आप आवश्यक संघर्ष कर सकेगें, आवश्यक कष्ट उठा सकेगें। इससे व्यसन छुट सकेगा। अतः आप जीवन में कोई उच्च स्थिति या लक्ष्य प्राप्त करना चाहते है तो व्यसन त्याग अनिवार्य मान लें.