गुरुवार, 9 मई 2013

कहाँ आ गए हम 

बहुत दिनों के बाद मै लौटा हूँ . आप लोगों का गुनाहगार हो सकता हूँ .अति व्यस्तता के कारण  कुछ लिख नहीं सका . इस  बीच कई बार बनारस जाना पड़ा जहाँ मैंने  अपने जीवन का  २ २  साल गुजारा हूँ   . पर अब बनारस पहले जैसा नहीं रहा . भीड़  और प्रदूषण से अटा  पड़ा है काशी . गंगा साफ़ नहीं रही .
ये  पंक्तियाँ 
खाक भी जिस जमीं की पारस  है,शहर मशहूर वो  बनारस है  

मशहूर तो अब भी है पर वो खिचाव नहीं रहा . 


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