कहाँ आ गए हम
बहुत दिनों के बाद मै लौटा हूँ . आप लोगों का गुनाहगार हो सकता हूँ .अति व्यस्तता के कारण कुछ लिख नहीं सका . इस बीच कई बार बनारस जाना पड़ा जहाँ मैंने अपने जीवन का २ २ साल गुजारा हूँ . पर अब बनारस पहले जैसा नहीं रहा . भीड़ और प्रदूषण से अटा पड़ा है काशी . गंगा साफ़ नहीं रही .
ये पंक्तियाँ
खाक भी जिस जमीं की पारस है,शहर मशहूर वो बनारस है
मशहूर तो अब भी है पर वो खिचाव नहीं रहा .
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