मंगलवार, 9 मार्च 2010

सुखी व्यक्ति कौन

संसार में आज सुखी व्यक्ति कौन है ? आप विचार कीजिये.परन्तु इसके पहले दुःख को देखिये-दुःख कहाँ से उत्पन्न होता है? जो हमको प्रिय है उसकी अप्राप्ति और जो अप्रिय है उसकी प्राप्ति-यही दुःख है। यह अप्रिय या प्रिय किसी न किसी इंद्रिय के माध्यम से हम तक पहुंचता है जैसे शब्द प्रिय या अप्रिय हो सकता है। इसी प्रकार दृश्य, स्पर्श, गंध आदि भी प्रिय या अप्रिय होता है। दुःख की उत्पत्ति ही इसके स्पर्श से होती है। अतः जो जागरूक है वे भोगों में रूचि नहीं लेते फलतः वह पदार्थ अपनी उपस्थिति से उनको सुख या दुःख नहीं देता।

संसार में करोड़ों स्त्री-पुरुष है जो अछे -बुरे सब प्रकार के है पर उनमे से जिनसे आपका पूर्व संपर्क न हो उनके द्वारा आपको कोई दुःख या सुख नहीं होता। सुख या दुःख तब होता है जब आप उनमे से किसी विषय में रूचि लेते है।
वावजूद इसके आप भोगों में रूचि ले या न ले फिर भी बहुत सी बातें, प्राकृतिक झटके आप तक आयेगें ही। जैसे आंधी आ गयी तो आप चाहें या न चाहें, रूचि ले या न ले, कुछ धूल आप तक भी पहुचेगी। इसी प्रकार आप चाहें या न चाहें आप का शारीर गन्दा होगा ही और उसे धोते रहना पड़ेगा। और अंतःकरण यानि मन शरीर का ही भाग है इसलिए प्रकृति की चलने वाली आंधी वहां तक भी पहुंचती है। यह आंधी काम और क्रोध है जिसके आने का पता आपको नहीं चलता अतः इसे रोकना असंभव है। जैसे मकान ऐसा बनाना संभव नहीं है की आंधी ,वायु न आवे यदि ऐसा मकान बने तो उसमे रहना संभव नहीं होगा अतः मकान में खिड़की रखनी ही पड़ेगी। आंधी आने पर उसको बंद किया जा सकता है लेकिन आंधी तो पूछकर नहीं आती अतः आंधी की धूल तो आएगी ही। इसी प्रकार मन में काम और क्रोध का वेग न आये यह संभव नहीं है क्योंकि ये दोनों आंधी है- ये व्यक्ति के कारण भी और समष्टि के कारण भी उठते है।

ये वेग स्थायी नहीं हैं आकर बने ही रहे ऐसा होता नहीं। संसार में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जो एक सप्ताह लगातार काम या क्रोध का वेग ढ़ोता रहे इसके पहले ही पागल हो जायेगा या मर जायेगा। इन वेगों को, शरीर से बाहर निकलने के पहले ही जो सह लेता है वही सुखी है। दुःख उसके समीप नहीं आएगा। वही संसार में सुखी व्यक्ति है.

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