पूरी सृष्टि तीन गुरों से युक्त है अतः सृष्टि की प्रत्येक वस्तु विचित्र लगती है. मनुष्य का सब प्रयत्न दुःख मिटाकर सुख प्राप्त करने का है लेकिन यह सुख जिसके लिए प्रयत्न किया जा रहा है वह तीन रूपों में प्राप्त किया जा सकता है. जैसे बहुत कम विद्यार्थी होतें है जिनकी पढाई में रूचि होती है अधिकांश को विवश होकर पढना पड़ता है. कोई मजदूर ख़ुशी से परिश्रम नहीं करना चाहता, किसी विवशता से परिश्रम करता है लेकिन पढाई पूरी होने पर जो योग्यता प्राप्त होती है या मजदूर श्रम करके जो मजदूरी प्राप्त करता है वह उनके लिए अमृत के समान है. यह तो सामान्य उदाहरण है . वस्तुतः जिस प्रयत्न से मन और बुद्धि निर्मल होती है , उस प्रयत्न का आनंद अमृत के समान स्थाई, सुख देने वाला है. यही सात्विक सुख है.
विषयों का इन्द्रियों के साथ संयोग होने पर जो पहले अमृत के समान लगता है वह बाद में विष के समान हो जाता है. यह सुख राजसी है. प्रिय शब्द, स्पर्श,रूप, रस या गंध इनको प्राप्त करके आपको बहुत सुख होता है, पर आप जानते है की इनके उपयोग के साथ कई रोग जुड़ें हुए हैं. भोग आतंरिक शक्तिं को, शरीर को विकृत करते है.
जो चित्त में विकार शक्ति को नहीं रहने देते जैसे निद्रा, आलस्य या प्रभाव को प्राप्त करने वाले सुख, तामसी सुख है. आज जितने भी उपाय समय काटने के लिए प्रचलित है और मनोरंजन के साधनों से भी ९० प्रतिशत से अधिक इस तामसी सुख को ही देने वाले है.
राजसी सुख भोग का सुख है. खाने-पीने का , आमोद-प्रमोद का जो सुख है वह तो थोडा बहुत सबको प्राप्त होता ही है. दूसरा राजसी सुख अहंकार का सुख है. कोई उपयोग नहीं है, लेकिन मेरा मकान इतना बड़ा,बैंक में मेरे पास इतने रूपये,मेरा प्रभाव इतना , इस प्रकार का जो अहंकार है,इस अहंकार में सुख नहीं है, ये तो आप नहीं कह सकते. इस सुख के पीछे ही समाज के अधिकांश लोग पागल हो रहे है. तीसरा राजसी सुख है क्रिया का सुख. आप रोज स्नान करते है-एक दिन स्नान करने को न मिले तो कितनी बेचैनी होती है. यह बेचैनी ही कहती है की स्नान करने से आपको सुख मिलता है.
तामसी सुख निद्रा और प्रमाद अर्थात समय काटने का सुख है. इसमें कोई उपयोगी काम नहीं किया जाता अपने समय को ताश,शतरंज या गप्प आदि में व्यतीत किया जाता है. इसमें जो सुख है उसे आप अस्वीकार नहीं कर सकते. लेकिन तामसी सुख का सबसे निकृष्ट रूप है अधर्म में सुख. किसी को दुःख देकर, किसी को अपमानित करके, किसी को हानि पहुंचाकर गर्व करने वाले ,सुखी होने वाले लोग आप के आस-पास होंगे - आपने उन्हें देखा होगा.इनका यह सुख तो है ही, यह सुख तामसी है.
तामसी सुखों में से आवश्यक निद्रा को छोड़कर बाकि प्रमाद और अधर्म के सुखों को त्याग देना चाहिए. राजसी सुखों में से भोग को समाप्त कर देना चाहिए, अहंकार के सुख को भी छोड़ देना चाहिए और क्रिया से होने वाले सुख को , यदि क्रिया उचित है तो आप बनाये रख सकते है. सात्विक सुखों में से कोई छोड़ने योग्य नहीं है अपितु उसे बढ़ाते रहना चाहिए.
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