बुधवार, 2 जून 2010

karm tatha karmyog ke adhikari

किसी भी कर्म का कौन अधिकारी हो सकता है -यह तय करना पड़ता है, उसके अधिकार का निर्णय लेना पड़ता है. यदि आप नौकर रखना चाहतें हैं तो आप अवश्य जानना चाहेंगे की उसमे उस काम की योग्यता  है की नहीं- अगर आप को यह मालूम हो जाये की जो व्यक्ति नौकर की सेवा करने आप के यहाँ आया है वह चोर है, अनाचारी है, शराबी है तो क्या आप उसे रखना पसंद करेंगे? सेना में जिन लोगों की भरती की जाती है उनमे शारीरिक योग्यता देखी जाती है. वहां भी अधिकारी का निर्णय होता है की जिस काम के लिए वह लिया जा रहा है  उसे पूरा करने की क्षमता उसके शरीर में है की नहीं. इस  तरह कोई भी लौकिक कार्य नहीं है जिसमे अधिकारी का निर्णय आवश्यक न होता हो. प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य कर सके , ऐसा नहीं है. एक ही व्यक्ति में अनेक कामों की योग्यता हो सकती है , किन्तु सब कामों की योग्यता हो जाएगी-यह संभव नहीं है और क्योंकि यह संभव नहीं है अतः काम के अनुसार अधिकारी छाटना ही पड़ता है.
जो भी चाहे सामाजिक कार्य करने लगे, जिसका जी चाहे वह नेता बन जाये-यह बात आजकल सामान्य हो गयी है पर इसके कारण समाज की हानि ही हुई है क्योंकि व्यक्ति का व्यक्तित्व जितना व्यापक होता जाता है उसके दोष उतने ही अधिक समाज में व्यापक होतें है उनके गुण उतने तेजी से नहीं फैलते क्योंकि लोकरुचि सत्प्रवित्ति  को देर से ग्रहण करने की है. इसमे लोकरुचि का दोष नहीं है यह प्रकृति का ही स्वभाव है की प्रत्येक वस्तु को बनाने में, उठाने में बहुत परिश्रम करना पड़ता है किन्तु बिगाड़ने  में, गिराने में थोड़े परिश्रम की आवश्यकता होती है. आप किसी वस्तु  को उपेक्षित कर दे, उसे बनाये या स्वच्छ  करने का प्रयत्न न करे तो बिना किसी प्रयत्न के वह वस्तु   मलिन होती रहेगी, बिगडती रहेगी. वह भवन हो, उद्यान हो, मशीन  कुछ भी हो, उसकी सुरक्षा के लिए प्रयत्न करना पड़ता है. वह प्रयत्न छोड़ दिया जाये तो वह अपने आप नष्ट होती जाएगी.


कर्मयोग के अधिकारी का जब चुनाव करना पड़ता है तो पहली शर्त है की वह व्यक्ति निस्वार्थ  हो.  अपने लिए उसे कोई पद, पदार्थ या प्रशंशा अभीष्ट न हो. क्या मिलता है की जगह वह क्या चाहता है, केवल इतना ही नहीं, कष्ट, श्रम , तिरस्कार, विफलता- इनको बहुत बड़ी सीमा तक सहने को प्रस्तुत होना चाहिए. इनमें से कुछ मिलने पर अविचलित रह सके, इतना धैर्य ,इतनी शक्ति उसमें होनी चाहिए. वह जिस कर्म में लगा है, उस कर्म से उसे कोई निंदा , कौई अपमान, कोई कष्ट नहीं हटा सके, तभी वह कर्मयोगी बन पायेगा.

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