गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

अप्रमाद

धार्मिक तथा अनेक ग्रंथों में प्रमाद को जीवन के लिए हानिकर बताया गया है-वस्तुतः प्रमाद है क्या? आप कहते है मै भूल गया-बात ध्यान में नहीं रही। इसी का नाम प्रमाद है और अर्थ है असावधानी.मनुष्य के लिए कुछ बातें आवश्यक है और कुछ अनावश्यक। जैसे उचित निद्रा जीवन के लिए आवश्यक है जितनी उपयुक्त निद्रा आपके स्वास्थ्य और शरीर की स्थिति को देखते हुए आवश्यक है उतनी निद्रा ली जानी चाहिए.आलस्य और प्रमाद अनावश्यक क्षेत्र है-इसमे आलस्य आपकी बुद्धि को आछन्न नहीं करता क्योकि आप जानते है पर आलस्य के कारन पड़े है किन्तु प्रमाद -यह व्यक्ति के बुद्धि को आच्न्न कर लेता है.असावधानी जान-बुझकर नहीं की जाती,हो जाती है-इसी असावधानी से बचना चाहिए।
जानवर पेट भरने या जीवन की थोड़ी बहुत आवश्यकता पूरा करने के अतिरिक्त अपना बाकि समय बैठकर,खड़े रहकर या सामान्य चेष्टा में काटता है। समय अकारण काटता है इसलिए पशु है। शारीरिक आवश्यकता से ऊपर उसके समक्ष कोई लक्ष्य नहीं है। हम भी इसी स्थिति को अपना ले यह बहुत दुःख की बात होगी। अतः प्रमाद में हमारी आसक्ति न हो । हमें सतत सावधान रहना चाहिए,जागरूक रहना चाहिए.

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