मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

संशय से हानि

मनुष्य स्वयं अज्ञानी होता है इसके साथ यदि उसमे श्रद्धा नहीं है ,किसी की बात मानने के लिए तैयार नहीं है,जो कुछ बतलाया जाता है उसपर संदेह करता है.ऐसे संशय चित वाले को सुख और सफलता प्राप्त नहीं होती।
वर्तमान दौर में हर बात में संदेह करना सामान्य बात हो गयी है। लोग बड़े गर्व से कहते है मैं अन्धविश्वासी नहीं हूँ लेकिन आपको मालूम होना चाहिए की विश्वास या श्रद्धा सदा ही अंधी होती है। केवल विश्वास या श्रद्धा से वही बात कही जाती है जो अन्धविश्वास से क्योंकि जिस विषय में आपको जानकारी है वह तो आपका ज्ञान,अनुभव या अध्ययन है परन्तु जिस विषय में आपकी जानकारी नहीं है उस विषय के किसी बड़े या किसी पुस्तक की बात को सच मान लेने का नाम ही श्रद्धा या विश्वास है। बिना अपनी जानकारी के उस बात को सच मान लेना यह सदा से ही अंध है।
आप अपने चारों तरफ देखे-संसार का कोई भी काम श्रद्धा या विश्वास के बिना नहीं चलता.छोटे से छोटे व्यवहार में भी आपको विश्वास करना ही पड़ता है । आप विज्ञान को ही ले ले -विज्ञान का प्रत्येक विधार्थी अपने से पहले के वैज्ञानिकों की खोज मान लेता है-यह मान लेना श्रद्धा के सिवा क्या है?। यदि प्रत्येक विद्यार्थी या वैज्ञानिक खोज को आरम्भ से ही प्रयोग कर देखना चाहे तो विज्ञान हजारों साल पीछे चला जायेगा। व्यक्ति चाहे कितना ही बुद्धिमान हो अपने पूर्ववर्ती लोगों की खोजों पर भरोसा करके ही चलना पड़ता है। ये खोजें ठीक है ,उसे विश्वास करना पड़ता है भले ही इस श्रद्धा के लिए आपको बहुत सी पुस्तकें पढ़नी पड़ी हों-आपने प्रयोग करके तो देखा नहीं की यह ठीक है या नहीं। इसे और सरल तरीके से कहे तो आप जानते है की सायनाइड एक मारक विष है । यह कभी प्रयोग करके देखा है आपने? कभी किसी वैज्ञानिक ने प्रयोग किया होगा। वह वैज्ञानिक भी आपके सामने तो प्रयोग नहीं किया है पर हम सभी विश्वास करते है की सायनाइड बहुत तीव्र विष है। इसी विश्वास के कारन व्यवहार चलता है। यदि आप इस पर संदेह करके प्रयोग करेगें तो मृत्यु निश्चित है।
जो व्यक्ति अज्ञानी ही(प्रत्येक व्यक्ति बहुत सारे विषयों में अज्ञानी होता है) और अविश्वासी भी है, हर बात में संशय करता है तब इसके अतिरिक्त और क्या उपाय रह जाता है की उसे निरंतर असफलता मिले, दुःख मिले। अतः जो व्यक्ति हर जगह संदेह करने लगेगा उसका जीवन अशांत हो जायेगा और जीवन में असफल हो जायेगा.

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