बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

परम-शांति

आज पूरा विश्व अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है-यह अस्थिरता भौतिक तथा प्राकृतिक दोनों रूपों में है-अशांति फैली हुई है.हर राष्ट्र एक दुसरे से भयभीत है और इस भय मे शांति की बात चल रही है-बड़े बड़े आयोजन हो रहे है फिर भी शांति नहीं मिल पा रही है। यह अशांति जीवन के हर क्षेत्र मे विद्यमान है। परिवारों मे बहुत ऐसे कम भाग्यशाली परिवार हैं जिनमे शांति है नहीं तो पारस्परिक संघर्ष और कलह है.समाज के किसी क्षेत्र मे शांति नहीं है। इसको हम सभी मानते है की अशांति दुःख का कारन है-शांति के बिना सुख की कल्पना नहीं की जा सकती।

मनुष्य को दो प्रकार की चिंता होती है-वह अशांत रहता है-एक जो उसे प्राप्त नहीं है जिसकी उसे आवश्यकता प्रतीत हो रही है वह प्राप्त हो-दूसरी जो उसके पास है और उसके लिए आवश्यक लगती है,वह नष्ट न हो-इसे कहते है योग और क्षेम की चिता। योग का अर्थ है जो नहीं मिला है वह मिले औए क्षेम का अर्थ है जो मिला हुआ है वह सुरक्षित रहे। उपार्जन और सुरक्षा -इन दो अशांतियो मे ही मनुष्य का पूरा जीवन विभक्त है। यदि दोनों मे से कोई चिंता न करनी हो तो मनुष्य संपूर्ण निश्चिंत है और यह निश्चिंतता ही परम सुख है परम शांति है।

यह एक कटु सत्य है की भौतिक साधनों से अशांति को मिटाया नहीं जा सकता क्योंकि बाहरी समस्त अशांति परिस्थितियों के प्रयत्न की प्रेरणा से ही उत्पन्न होती है। व्यक्ति, समाज,संस्था,राष्ट्र आदि परिस्थितियों को ही बदलना चाहते है -इस बदलाव से शांति नहीं पाई जा सकती।

शांति बाहर से नहीं आएगी क्योंकि शांति वाह्य पदार्थ नहीं है-यह आतंरिक तत्त्व है इसलिए अपने भीतर से आएगी। आपको इस पर विचार करना चाहिए की इसे किस तरह प्राप्त किया जाये। आपको दुःख और सुख से निरपेक्ष होना होगा तभी यह शांति प्राप्त हो सकेगी.

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